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सोमवार, 4 अगस्त 2025
ओडिशा के इतिहास का सबसे कलंकित अध्याय: एक हिंदू राजपूत ने जब श्रीमंदिर लुटा था
जन्मपाणी : जीवन का पहला स्पर्श
नीलांबर रायसिंह भ्रमरवर : ढेंकानाल के एक स्मरणीय शासक
शुक्रवार, 20 मार्च 2020
अणसर ~ श्रीक्षेत्र पुरीमें हजारों वर्षों से प्रचलनमें एक अनोखा Quarantine
अणसरके बारे में जानते है आप ? यह एक ओडिआ शब्द है जो श्रीजगन्नाथ मंदिर से संबंधित है...
"अणसार हमारी संस्कृति का एक हजार साल पुराना
Quarantine तरीका है।"
हर जगन्नाथ प्रेमी जानता है कि रथ यात्रा से पहले हर साल भगवान जगन्नाथ प्रतीकात्मक रुपसे बुखार और सर्दी से पीड़ित होते हैं। इसलिए ठाकुरजी को quarantine में या हमारी हिंदू परंपरा में जिसे "अणसार" कहा जाता है, उसमें रखा जाता है ...
और कितने दिन रखा जाता है ?
जी 14 दिन, ठीक 14 दिन याद रखें।
इस समय के दौरान भगवान हमारे मंदिर के रत्न सिंहासन पर न रहकर एक खास घर अणसर घर में अकेले रहते हैं।
इस समय के दौरान, भगवान के दर्शन को रोक दिया जाता है, ठाकुरों को आयुर्वेदिक जड़ी बूटी, हर्बल दवा के साथ मिश्रित जड़ी बूटियों की पेशकश की जाती है, और पथ्य दिया जाता है। यह परंपरा हमारे श्रीक्षेत्र के श्रीमंदिर में हजारों वर्षों से चली आ रही है, और यह आगे भी युहीं चलता रहेगा जब तक कि यह उड़िआ जाति का अस्तित्व है ।
और आज इकीसवीं सदी में, पश्चिमी लोग आए और हमें सिखारहे कि quarantine 14 दिन का होना चाहिए !
हम हजारों वर्षों से श्रीजगन्नाथक्षेत्र में जिस प्राचीन भारतीय रोग निवारण प्रथाका अभ्यास कर रहे हैं ये विदेशी लोग आज हमें बता रहे हैं...
हमें हमारे पूर्वजों ने पर्वके माध्यमसे जीवनकी वैज्ञानिक पहलू को सिखाया था,समझाया था पर हम श्रीमन्दिर गये और मिठाई खाकर लौट आये...
हमारी आधुनिक पीढ़ी भी बहुत दूर चली गई है ! आजकलके पढेलिखे भारतीय कह रहे हैं कि हमारा हिंदू धर्म अंधविश्वाससे भरा हुआ है, यह एक गैर-वैज्ञानिक धर्म है
पर ये तथाकथित विज्ञान युगके बच्चे अपने परंपरा तौहार और जीवनशैली के अंदर छिपे वैज्ञानिकताको बिलकुल भी भांप नहीं पाती...
आज, पूरी दुनिया दहशत की स्थिति में है, कोरोनाको खत्म करने के लिए सभी उस 14-दिवसीय quarantine की वकालत कर रहा है, जिसे हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले निर्धारित किया था कि जब भी सर्दी के साथ बुखार हो तो व्यक्ति चाहे वो राजा हो या किसान उसे 14 दिनों के लिए अणसर यानी quarantine
करना है ।
सोमवार, 25 दिसंबर 2017
उत्कल एक व्याख्या
यूं तो बर्तमान
ओडिशा का सबसे प्राचीन व लोकप्रिय नाम
हे कलिंग जो कि उससमय इतना प्रशिद्ध हुआ कि बादमें चीन से लेकर के मलेशिया इंडोनेशिया आदि क्षेत्रों में भारतीयों के क्लेंग,क्लिगं तथा किल्गीं आदि नाम प्रचलित हो गया किंतु
बर्तमान ओडिशा का आधिकारिक नामों में से
एक उत्कळ भी कम् लोकप्रिय नहीं है...
आम तौर पर कहाजाता है कि
उत्+कळ=उत्कळ (ଉତ୍କଳ)
उत् (उ+क्विप्) एक उपसर्ग है
ओर उसके कई अर्थ है
जैसे :--उर्द्ध या उचांई में,सम्यक रुप से,इतःस्ततः,उच्चैस्वर में,उत्कट, उलटा,उत्कर्ष, समुचय,प्रश्न, वितर्क,अधिक आदि.....
वहीं कळ/कल शब्द एक धातु शब्द है
जो कि तीन मूल अर्थों में प्रयोग किया जाता है
1.गमन करना
2.गणना करना
3.शब्द करना
(ओडिआ भाषा में यन्त्र को ‛कळ’ भी कहाजाता है च्यूंकि उपरोक्त गुण उसमें पाये जाते है)
इसके अलवा कळ शब्द का एक विशिष्ट शब्द के रुप में भी बहुत से अर्थ होते है
जैसे कि..
୧.अत्यन्त मधुर ध्वनी(कल कल)
୨.भ्रमरों का गुंजन
୩.शाल वृक्ष
୪.शुक्र
୫.अंकुर
୬.अजीर्ण
୭.यन्त्र, कौशल
୮.सुविधा
୯.कन्दर
୧୧.वश्यता,अधीनता
୧୨.अधिकता
୧୩.मौका
ओर अब यदि इन सारे अर्थों को मिलाकर व्याख्या करें तो
कैसा होगा चलिए देखते है.......
1.जिस क्षेत्र के अधिवासी सदा उर्द्ध कि ओर गति करते है यानी जिनके मनमें
जाति धर्म के नाम पर
हीनता नहीं होता.....
2.जिस जाति कि गणना समस्त भारतीय जातिओं में आगे हुआ करता है(था)
यथा जो देश भारतवर्ष में उर्द्ध पर है अर्थात भूस्वर्ग है..
3.जिस भूभाग के अधिवासीओं के गर्जना(शब्द करना) मात्र से ही शत्रु उलटे पांव पलायन कर देता है
.......
1.जिस भूमि के अधिवासी सम्यक रुपसे
मधुरभाषी तथा साधु स्वभाव के होते है
वे अकारण किसी से वैर नहीं रखते ....
2.जो देश स्वर्ग सम उत्कर्ष है अतः वहां के नंदनकानन समान उपवनों में
भ्रमरें सदा कल कल गुंजन करते पाये जाते है...
3.जो देश वहुधा शाल आदि
मजबूत वृक्षों के परिपूर्ण है तथा प्राकृतिक शोभा युक्त सौंदर्य शालिनी है ।
4.जिस देश की प्रशिद्धि शुक्र ग्रह समान
जाज्वल्यमान है ।
5.जिस उत्कर्ष कलाओं के देश में बौद्ध, जैन तथा महिमा धर्म से लेकर ओडिशी,छउ नृत्य स
आदि विभिन्न कलाओं का अकुंरोद्गम् हुआ है ।
6.जो देश व उसके अधिवासी उत्कट भीषण शत्रु के लिए भी अजीर्ण हो.....
ये वही जाति है कि शत्रु भी जीत न सका तो कलिगां साहासीका लिखकर चलता बना था......
୭.जो देश यन्त्र कौशालादि के लिए लोकप्रिय हो..
୮. जिस देश में जीवनयापन कै लिए सर्वाधिक सुविधा प्रकृति से मिला हुआ है ।अनेकानेक नदनदी,ह्रद,पर्वत तथा उपत्याकाओं से सजा जो देश स्वर्ग सम सुंदर हो.....
୯.जिस देश के अधिवासी
नीलकंदर निवासी श्रीजगन्नाथ महाप्रभु के प्रति निष्ठावान तथा श्रीजगन्नाथ जिनके राजराजेश्वर है ....जिस देश में जाति धर्म का भेद न हो कोई किसीके अधीन न हो वो उत्कळ है...
୧୦.भ्रांत प्रश्नकारी वितर्क प्रेमी अन्य भारतीय जाति भी जिस भूमि के महानता के आगे नतमस्तक हो गये थे ।
कभी इस जातिको म्लेंच्छ कहके अपमानित करनेवाले भी समय के साथ इस उत्कल देश के अधिवासीओं के पुरुषार्थ देखके अपने वाक्य लौटाने को वाध्य हो गये थे ।
आगंगा गोदावरी समस्त पूर्व भारत जिस देश के महान सनातनी जगन्नाथ धर्म से प्रभावित है
यह है वह देश उत्कल ..
.............
ओडिआ साहित्य में उत्कल शब्द कई अर्थों
में प्रयोग होता है
1.उत्कण्ठित-- ज्ञान तथा कला के लिए जो उत्कंठित
୨.शिकारी,व्याध - शत्रुओं के शिकार में शिद्धहस्थ
୩.कर्कष गर्जना - शेर ही करते है भीरू नहीं ....
୪.बंगाली विश्वकोष लेखक उत्कल शब्द का एक अर्थ भारवाहक लिखें है..
अठारहवीं सदी से बीसवीं सदी तक कई ओडिआ बंगाल में भारवाहक का काम किया करते थे,माली हुआ करते थे,पाचक(रसौया) हुआ करते थे तो यह अर्थ बनाया गया ।
खैर हम वह भारवाहक अर्थ को भी सादर ग्रहण पूर्वक अपना सीना तानकर कहते है कि हाँ
हम वही भारवाहक उत्कलीय जाति है जिसने
भारतीय संस्कृती तथा भाषाको को अपने बोइत या बहीत्र में लादकर
इंडोनेशिया, मालेशिया,फिलपिन्स,कोरिया,मोरेसियस, चीन,जापान,श्रीलंका व मालडीव्स से लेकर माडागास्कर,एथिओपिया आदि देशों तक पहुंचाया......
#बंदेउत्कलजननी
#जयकलिगोंत्कल
गुरुवार, 24 अगस्त 2017
ओडिशा विभाजन चाहना ओडिशा को गरीब बनाए रखने जैसा है
ओडिशा का विभाजन संभव नहीं है
यह तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है।
तुम पूछोगे क्यों?
ऐसा इसलिए है
क्योंकि कोशल एक ऐतिहासिक भौगोलिक इकाई के रूप में आधुनिक ओडिशा से बहुत दूर है....
जो जमीन ओडिशा का हिस्सा नहीं है, आप इसे कैसे विभाजित कर सकते हैं.....
केवल कोशल राज्य के नाम पर तो बिल्कुल नहीं च्युंकि पौराणिक मिथकों के आधारों पर इतिहास व कानुन यकीन नहीं रखता ।
ओर यदि माना भी जाय तो कोशल राज्य उस समय समुचे उत्तर भारत में फैला हुआ था ऐसे में इसे भारत के सभी हिंदीभाषी कैसे स्वीकार कर लेंगे ।
पौराणिक आख्यानों के मुताबिक कोशल राज्य के दो टुकड़े हो कर के एक दक्षिण कोशल बनगया था.....
ओर ये दक्षिण कोशल दरसल आजका छत्तीसगढ़ ही है लेकिन कुछ ओडिशा के पश्चिमी भू-भागों को भी कोशल बताते फिर रहे है जो कि एक संघराज्य में किसी क्षेत्र विशेष के स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है ।
कानुनन यह असंवैधानिक कृत्यों में से एक है !
ओडिशा के पश्चिमी भाग तो प्राचीन काल से ही कॉलिंगदेश के हिस्से रहें है ।
स्थानीय लोगों के जीवन को नष्ट करने और कुछ अनैतिक गुटों की ओर से उनके जीवन पर नियंत्रण हासिल करने के लिए एक राजनीतिक साजिश चलाया जा रहा है, ओर षडयन्त्र रचनेवाले सुत्रधर ओडिशा से नहीं है
लेकिन उन मदारीओं ने ओडिशा में कुछ बंदरों को पाल रखा है .....
जब उन्हें नाच देखना होता है
उनके तथाकथित कोशली बंदर जमकै नाच लेते है !!!!
चलो फिर भी ओडिशा के पश्चिमी हिस्सों को वर्तमान ओडिशा राज्य से विभाजित करने के विषय पर विचार करते है ....
आप मेरा यकीन किजिए, अगर ऐसा हुआ तो यहां पश्चिम ओडिशा में रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए यह एक आपदा होगा.....
आप पूछोगे कैसे ?
आइए हम इसका विश्लेषण करें:
१.पहली बात तो यह होगा कि यदी कोशल के नाम पर ओडिशा का विभाजन हुआ तो वो landlocked हो जाएगा ।
उत्कल के पास सारे पोर्ट होगें ओर
इससे पश्चिमी ओडिशा के व्यापारी तथा व्यापार दोनों ही प्रभावित होंगे !
२.ओडिआ लोग सबसे ज्यादा संबेदनशील होते है एक ओडिआ होने के नाते मुझे इस बात का एहशाश ओर यकीन है ।
यदि ओडिशा का विभाजन होता है तो दोनों क्षेत्रों के लोग एक दूसरे से नफ़रत करेंगे !
नफ़रत के वजह से पश्चिमी ओडिशा के लोग जगन्नाथ संस्कृति को त्याग देंगे ओर इस तरह से वहां वर्षों से जगन्नाथ संस्कृति के कारण पैर टिका न पानेवाला ख्रिस्तीआन् धर्म क़ायम हो जाएगा !!!!!
३. दोनों ही भू-भागों में नफ़रत के कारण आपसी झगडे चरम होगें
ओर मामला ज्यादा बिगड़ी तो गृहयुद्ध तक भी हो सकती है । आपसी घृणा व द्वेष के कारण दोनों ही भू-भागों में विकास नहीं हो पाएगा ओर दोनों क्षेत्रों को भारत के सबसे निचले स्तर पर रहना होगा.....
४.
कोशल खुद राजनीतिक रूप से अस्थिर हो जाएगा क्योंकि इसके लिए लड़ रहे लोगों ने अभी तक अपनी सीमा निर्धारित नहीं की है। कुछ नक्शे में, उन्होंने अनुगुल, कलाहांडी, कोरापुट जिले कोक्षशामिल किया है।
इनमें से कोई भी उन्हें शामिल होने में रुचि नहीं रखता है।
प्रो-कोसाला ग्रुप ने पहले स्थानीय लोगों से नगण्य सहायता के साथ-साथ विभिन्न अभियानों का आयोजन किया था, यहां तक कि आंदोलन के केंद्र संबलपुर में भी खुब हो हल्ला मचाया था । लेकिन अंततः उसी संबलपुर में लोगों ने उनको झाडु मार मार कर भगदिया तो ये लोग आजकल बरगढ़ में कोशल कैंप चला रहे है ।
५.पश्चिमी ओडिशा से ओडिआ भाषाका जन्म हुआ ! पूरब ओडिशा के लोग संस्कृतभाषी ही थे कुछ लोग पाली भी बोला करते थे !!!!
सातवीं सदीमें संबलपुर क्षेत्र में उड्डीयान बौद्ध राज्य स्थापित होने के बाद वहां के सराह प्पा, कान्हु प्पा,लुई प्पा जैसे बौद्ध संन्यासीओं ने
उनके स्थानीय भाषा (ओडिआ) में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था जिससे संपूर्ण भारत प्रभावित हुआ था !!!!
इससे प्रभावित होकर पूर्व ओडिआ क्षेत्रों में पश्चिमी ओडिआ या उडि्डयन भाषा के साथ पाली, द्रविड़, आदिवासि तथा संस्कृत जैसे भाषाओं के मिश्रित ओडिआ भाषा का जन्म हुआ था । तो
यह इतिहास स्पष्ट रूप से एक संकेत है कि वहां रहने वाले लोग हार्ड कोर ओडिआ ही
हैं संबलपुरी नृत्य और संबलपुरी साड़ी ओडिसी और मणिवन्द साड़ी जितना ही लोकप्रिय रहा है ।
६.
राज्य सरकार की अनुदान पर रोना उतना सच है जितना यह झूठ है ओडिशा के पश्चिमी जिलों के सभी अनुदान संबलपुर-झारसुगुडा बेल्ट में केंद्रित हैं, इस प्रकार इसी क्षेत्र में अन्य जिलों की खराब स्थितियों को कम नहीं किया जा रहा है।
इस प्रकार, उनके हिस्से को खाए जाने वाली संस्था में शामिल होने के लिए उनके पास कम झुकाव है। बहरहाल उनके जितना ही गरीब पूर्व ओडिआ लोग भी है !!!! दोनों ही तरफ लुट तो नेता ओर बाहरी लोग ही रहे लेकिन दोष मात्र पूर्व ओडिआ लोगें के मत्थे ही मढ दिया जाता है ।
७.
एक शब्द के रूप में 'कोसल' का ओडिशा के पश्चिमी क्षेत्रों का कोई संबंध नहीं है।
हम कभी भी "कोसाली भाषा", "कोसाला डांस", "कोसली साड़ी" नहीं कहते हैं यह हमेशा "संबलपुरी भाषा", "संबलपुरी नृत्य", "संबलपुरी साड़ी" रहा है। आज से महज़ २० साल पहले कोशली नाम से कुछ न था.....
दरअसल ओडिआ भाषा में कोशली शब्द का अर्थ नाव से संबंधित है । ओडिशा में एक खास तरह के छोटे नावों को ही कोशली कहजाता था !!!!
८.भाषा के नाम पर ये लोग अलग राज्य बनाना चाहते हैं । लेकिन
संबलपुरी भाषा जिसे बंदरों ने कोशली कहना शुरू किया है वास्तव में स्वयं की एक अलग भाषा नहीं है। यह ओडिया का अन्यतम बोली है !!!!!
दरअसल, संबलपुर और सुंदरगढ़ में बोले जाने बोली सामान्य भिन्न होता है ओर ऐसी भिन्नताएं गंजाम में भी है बालेश्वर में भी है ....
ओडिशा के हर क्षेत्र में कुछ कुछ खास शब्द प्रचलित है जो एक दुसरे से भिन्न होते है लेकिन यह शब्द भिन्नताएं नगन्य ही है लेकिन सभी ओडिआ बोलीओं में आपसी समानताएं प्रबल है । सिर्फ शब्दों के भिन्नताओं के लिए एक संस्कृतीवाली भू-भाग को बांटना न्याय संगत नहीं है ।
ऐसे शब्द भिन्नताएं ओडिशा के हर हिस्से में है ।
उदाहरण के लिए जाजपुर क्षेत्र में कछुआ को “kachhima” कहा जाता है, लेकिन ओडिशा के बाकी हिस्सों में “Kainchha” है कही कहीं कंछिअ भी कहते है !!!!
क्या के लिए ढेंकानाल में किरा कहते है तो बालेश्वर में किस , गंजाम जिले में किअण ओर संबलपुर में केन्ता .....
तो सच्चाई तो यही है कि
यह छोटे मुद्दों पर एक निराधार लड़ाई है, जिसमें से कुछ गुट राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश कर रहे हैं।
ओडिशा के सभी जिलों के लोगों के बीच कई सौहार्दपूर्ण संबंध मौजूद हैं और सामान्य जनसंख्या इस लड़ाई में उलझन में कम दिलचस्पी रखती है। लेकिन, यह तथ्य अभी भी बनी हुई है कि राज्य सरकार को भुवनेश्वर पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय राज्य के समग्र विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
सोमवार, 14 अगस्त 2017
दोरा_विशोई_ओर_चक्रा_विशोई दो_ऐसे_स्वतंत्रता_संग्रामी_जिनसे_शायद_ही_भारत_परिचित_हो
१८६५ में घुमुसर रियासत(गंजाम जिला) में आदिवासियों ने स्वतंत्रता संग्रामी
कमलोचन विशोई के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया था....
कंध आदिवासियों के जंगल अधिकारों पर पाबंदी लगाकर अंग्रेजी सत्ता ने आष्ट्रिक जातियों को विद्रोही बनादिया था....
ये विद्रोह गंजाम,गजपति,रायगडा, कंधमाल जिलों में फैलता गया....
विभिन्न जगहों में सेंकडो अंग्रेज सैनिक व उनके समर्थकों को मारा गया
सिर्फ घुमुसर में ही एक लडाई में २ राज्यकर्मियों समेत ४८ अंग्रेज सैनिक मारेगये ....
उस दिन तो वहां से अंग्रेज दुम दबाकर भाग निकले.....
लेकिन बाद में कैप्टन् Edward russel के नेतृत्व में अंग्रेज सैनिक बहुत से कंध आदिवासियों को निर्ममता से हत्या करने लगे....
बच्चे बुढे औरत जो भी आदिवासी उनके सामने आ जाता वो मारा जाता....
कोई दया नहीं कि नीति पर थी कंपनी सरकार....
इस बीच विद्रोह ओर भी उग्र हुआ.....
दोरा विशोई कमलोचन जब अनगुल में थे वहां के स्थानीय राजा सोमनाथ सिंह ने उन्हें अंग्रेजों के हाथों पकडवा दिया.....
दोरा विशोई कमलोचन मृत्यु पर्यन्त मांद्राज के गुटि में जेलदंड भोगते रहे ओर मातृभूमि से दूर उनकी मृत्यु हो गई थीं.....
हालांकि दोरा विशोई के पकडे जाने पर भी कंध विद्रोह थमा नहीं था....
१८४६ में इस विद्रोह का नेतृत्व किया कमलोचन के भाई के पुत्र चक्रा विशोई नें....
लेकिन तब तक कंध आंदोलन दिशाहीन हो गया था....
कंध अब समतल अंचल के स्थानीय अधीवासियों पर भी आक्रमक रवैया अपना रहे थे ।
च्युंकि कंधों के भूमिओं को छिनकर अंग्रेज उन भू-भागों को अपने गोरचटे साहुकार व्यापारीओं दे रहे थे.....
तो उनपर
गाज तो गिरनी ही थी
ओर जब गिरी ज़ोरदार गिरी .....
तब कंपनी सरकार ने उन विद्रोहीओं को सबक सिखाने के लिए
पहले
Captain Mcpherson ओर बाद में Brigadier General Dice को नियुक्त किया था .....
१८४६ से १८५४ तक चले कंध आंदोलन को कुचलने के लिए दोनों अफसर कैप्टन एडवार्ड रॉसेल से भी बर्बर बने.....
लाखों आदिवासियों को बेहरमी से मार दिया गया....
कभी ढेंकानाल अनगुल क्षेत्र जिन शबर कन्ध आदिवासियों की लाखों वर्षों से मूल हुआ करती थी अब यहां आदिवासी अल्पसंख्यक रह गये है....
खैर अंग्रेज आखरी दम तक लगे रहे लेकिन
कभी भी चक्रा विशोई को जीवित नहीं पकड़ पाये
जबतक जीवित रहा वह वीर लड़ता रहा.....
आज ये देख कर दु:ख लगता है कि ऐसे वीरों को उसके अपने लोग ही नहीं जानते है....
क्या उनका विद्रोह विफल गया ?
शायद नहीं
च्युंकि वह आज भी यहां के मिट्टी में खुन बनकर ही सही है ओर रहेंगे सदा हमारे हृदयों में....
#बंदेमातरम्
#बंदेउत्कलजननी
स्वराज भाया अलवत् होगा
पंडित निलकंठ दास जब उत्कलमणि गोपबंधु दास तथा भागिरथी मिश्र के साथ संबलपुर में थे
उन्होंने वहां असहयोग आंदोलन में प्रमुख भूमिका अदा किया था ।
संबलपुर में सभी ने मिलकर जातीय विद्यालय कि स्थापना किया था जिसमें पंडित नीलकंठ
प्रधान शिक्षक बनाए गये थे ।
वहां क्रान्तिकारीओं ने मिलकर "सेवा" नामसे एक पत्रिका प्रकाशित किया जाता था....
इस पत्रिका का ओडिशा के असहयोग आंदोलन में अहम योगदान रहा है ।
उन दिनों वहां के राष्ट्रीय सभा समितिओं
पंडित निलकंठ का एक उदवोधनी कविता काफी लोकप्रिय हुआ था
"स्वराज भाया अलवत्" होगा नाम से
यह हिंदी के साथ ओडिआ शब्दों को मिला कर लिखागया एक देशात्मवोधक गीत था.....
पैश है उस कविता के चंद लाइनें.....
स्वराज भाया अलवत् होगा
छोडके आओ गुलामी
भारत लडका गोलाम होके
काहे करो बदनामी ।।
गुलामहोंने मालुम नहीं कि
कैसे हें राज वेगारी
सबकुछ जाए दरियापारी
घर में हमलोग भिखारी ।।
स्कूल कचेरी काउन्सिल को
इयाद रखो बाबुजी
माया ये सब गोलामी का
इसमें नाइं भूलोजी.....!!
दिल में स्वाधीन दिल में गोलाम
दिल का बंधन नौकरी
दिल का मजा रखो भेइया
छोड दो सब सरकारी !!
सोमवार, 7 अगस्त 2017
ओडिआ ओर लिथुआनिया है संस्कृत से सबसे नजदीकी भाषा
भारोपिय भाषाओं में सबसे शुद्ध भाषा है वेदभाषा । ओर वेदभाषा के नजदिकी भाषाओं में क्लासिक संस्कृत,पाली,आवेष्टान्,ग्रीक्,,लाटिन हि माने जाते है । अब इन भाषाओं में ज्यादातर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं ।
लेकिन भारोपिय भाषा परिवार से फिलहाल दो भाषाएं ऐसे हे जो कि आर्यभाषा से काफी हद तक नजदीक बताये जाते है ।
एक है लिथुआनी या
लिथुआनियाई (लिटूवीओ कलाबा)
यह लिथुआनिया की आधिकारिक राज्य भाषा है और इसे यूरोपीय संघ की एक अधिकृत भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। लिथुआनिया में लगभग 2.9 मिलियन मूल लिथुआनियाई बोलने वाले हे और लगभग 200,000 विदेश में हैं। लिथुआनियाई एक बाल्टिक भाषा है, लातविया से संबंधित है। यह भाषा लैटिन वर्णमाला में लिखा है। लिथुआनियाई को अक्सर सबसे रूढ़िवादी जीवित भारत-यूरोपीय भाषा कहा जाता है, प्रोटो-इंडो-यूरोपीय के कई सुविधाओं को बनाए रखने में अब अन्य अन्य यूरोपीय-यूरोपीय भाषाओं में खो गया है।
इंडो-यूरोपियन भाषाओं में, लिथुआनियाई असाधारण रूप से रूढ़िवादी है, कई पुरातन सुविधाओं को बनाए रखना अन्यथा केवल प्राचीन भाषाओं में पाया जाता है जैसे संस्कृत या प्राचीन यूनानी.....
प्राचीन आर्यभाषा से सर्वाधिक नजदीक
दुसरी भाषा #odia है ।
ष्टिसार्ड ओ माली जैसे भाषाविज्ञानीओं ने इसे प्राचीन आर्यभाषा का सबसे नजदीकी भाषा प्रमाणित किया है । हजारों मूल संस्कृत शब्द आज भी ओडिआ में उसके उसी प्राचीन स्वरूप के साथ प्रचलन में हें । वहीं हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं ने अरवी फार्सी से शब्द आहरण कर अपने भाषाओं से संस्कृत शब्द व्यवहार कम करदिया ।
ओडिआ को शास्त्रीय मान्यता मिलने के बाद यह बात ओर भी स्पष्ट हो चुका है कि हिंदी तथा बंगाली जैसे भाषाओं से भी कहीं अधिक समृद्ध व प्राचीन ओडिआभाषा ही है ।